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Showing posts from August, 2020

कद्दू के फूलों का चीला

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 कद्दू की  चीले (पटूड़ी) आवश्यक सामग्री कद्दू के फूल   7-8 बेसन 3 चम्मच  प्याज दो मध्यम आकर के  लहसुन चार से पांच कली नमक  स्वादानुसार  मिर्च ,हरी मिर्च स्वादानुसार धनिया 1 छोटा चम्मच हल्दी आधा छोटी चम्मच हींग चुटकी भर पानी आधा गिलास सूजी 1 बड़ा चम्मच तेल 2-3 चम्मच सरसों के दाने बनाने की विधि:- कद्दू के फूलों को अच्छे से साफ करके पानी में धो लेंगे। उसके बाद बारीक टुकड़ों में काट देंगे। बेसन में मिला  लेने के बाद उसमें कटा हुआ प्याज ,लहसुन कद्दूकस किया हुआ  मिला लेंगे।अब  इसमें नमक ,मिर्च,हरी मिर्च ,धनिया, हल्दी ,हींग ,सभी को स्वादानुसार मिला लेंगे। तत्पश्चात तवे मैं थोड़ा सा तेल डाल दें उसमें सरसों के दानों को डालकर इस गाढ़े मिश्रण को उस पर फैला लेंगे। थोड़ी थोड़ी देर के बाद उसे दोनों तरफ से पका लेंगे। इस प्रकार आपका चिला तैयार है,आप इसमें हरी अथवा लाल चटनी के साथ सर्व कर सकते हैं।

काले चने का फाणू उत्तराखंड का व्यंजन

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  चने का फाणू : सामग्री- काला चना भीगा हुआ  1 कटोरी(5-6 घण्टे)          हरी मिर्च दो से तीन स्वादानुसार           अदरक एक छोटा चम्मच          लहसुन एक छोटा चम्मच         सरसों  का तेल  2 बड़े चम्मच        नमक स्वादानुसार         लाल मिर्च पाउडर 1 छोटा चम्मच        धनिया  1  छोटा चम्मच        हल्दी  1  छोटा चम्मच        हींग चुटकीभर बनाने की विधि :  सबसे पहले हम चने को बारीक पीस लेते हैं  इसमें उसके  बाद अदरक और लहसुन ,हरी मिर्च भी पीस लेते हैं। कढ़ाईमें थोड़ा सा तेल लेंगे, उसमें सरसों के बीज या जख्या के बीज डाल देते हैं ।पिसा  हुआ  चना तेल में डाल देते हैं और इसके साथ हम थोड़ा सा लहसुन अदरक के पेस्ट को भी इसमें मिला देते हैं ।उसको अच्छे से पका लेते हैं उसमें हल्की सी महक आती है और पकाते ही वह महक दूर हो जाती हैं। इसके बाद नमक  ,हल्दी,लाल मिर्च पाउडर स हींग को उसमें मिला लेते हैं और थोड़ी देर और कढ़ाई में चने को जलाते जाते हैं उसके बाद थोड़ा जरूरत के हिसाब से गरम पानी डालते हैं। और उसको पकने तक गैस पर ही रहने देते हैं।  उबलने के बाद इसको गैस स्टोर से उतार लेते हैं, गरमा गरम चने का फाणू

गले के आभूषण

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  गुलबंद या गुलोबंद -यह भी स्वागतम का भाषण है जो 10 से 30 ग्राम सोने का बना होता है। इसमें 10 से 12 तक चौक को कलात्मक स्वर्ण पत्र मखमल या सनील के 30 सेंटीमीटर 3 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी लगे होते हैं उसे गले में  छूते हुए पहना जाता है कुमाऊं क्षेत्र में गुलबंद कोई रामनवमी पर भी पहना जाता है। लॉकेट:- यह बात प्रचलित स्वर्ण आभूषण है, जिसे हार भी कहा जाता है। यह सोने का बनाया जाता है। जिसका भार 100 से 300 ग्राम होता है। और प्रौढ़ महिलाएं चांदी का पेंडल युक्त सात से आठ लड़कियों का हार पहनती है। चर््यो:-यह मायावती है , जिसमें चांदी या सोने के दानों का के साथ लाख या थालीपोत के दाने क्रम में जुड़े होते हैं। सोने का 10 से 30 ग्राम तथा चांदी का 20 से 40 ग्राम का बनाया जाता है। सुहाग चिन्ह होने के कारण इसको उतारना अशुभ माना जाता है। हंसुली:-जनसाधारण का लोकप्रिय आ भूषण है।यह दूसरा से 5 ग्राम तक चांदी का बनाया जाता है। संपन्न परिवारों में सोने की हसरत में भी बनाई जाती है। कंठीमाला:-20-40 ग्राम  भार  सोने या चांदी के खाचों में  नग जड़कर डिजाइन वाली या मछली के आकार की बनाई जाती है। मूंगों की माला :-  जिस

उत्तराखंड में कानों के आभूषण

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 मुर्खली या मुर्खी या मुन्दड़ा मुर्खली , अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोने या चांदी की 5 से 10 ग्राम भार तक की होती है। पहले यह बारह आना शुद्ध सोने की होती थी । इन्हें कानों के किनारे पहना जाता है । यह दिखने में बहुत ही सुंदर लगती हैं यह स्त्री के  सौंदर्य को बढ़ा देते है। बाली:- यह छोटे गिलास क्या करके सोने की बनाई जाती  थी किन्तुब अब चांदी या पीतल की भी बनी हुई होती है। यह कान के निम्न भाग में क्षेत्र करके पहनी जाती है । फैशन के दौर में बाद अपने मूल स्वरूप से बहुत ही दूर हो गयी है। कुंडल:- चांदी या सोने से बने हुए इस आभूषण पर बहुत ही आकर्षक ढंग से चित्रकारी की जाती है। इसमें उस पर फूल या मोर की आकृति बनी होती है। कर्णफूल:- यह चांद के आकार का पूरे कान को ढकने वाला आभूषण है ।जो ऊपरकी और पतला और नीचे की तरफ चढ़ा बना हुआ होता है। यह पांच से 10 ग्राम तक के बनाए जाते हैं। तुग्यल:- कुमाऊं क्षेत्र में प्रचलित कानों का यह आभूषण चपटी की पट्टी के आकार का होता है ।जो सोने या चांदी का बना होता है इसका हलवाई इलाज नगीने जुड़े होते हैं। गोरख:- यह विशेष रूप से पुरुषों का गहना है। जिसे सोना या चांदी दोनों

उत्तराखंड में सिर में पहने जाने वाले आभूषण

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            शीशफूल फूल की तरह सिर पर पहने जाने वाला आभूषण चांदी से 50 ग्राम चांदी का बना हुआ होता है जंजीर और हो की सहायता से विशेष अवसरों पर पहना जाता है।              मांग टीका यहां महिलाओं के सुहाग का प्रतीक है। जो 5 से 10 ग्राम सोने का बनाया जाता है। यह चेंज से जुड़ा हो गोल आभूषण है। जो सिर के मध्य भाग अर्थात माथे के मध्य में तथा अन्य शुभ अवसर पर पहना जाता है।                सुहाग बिंदी सुहागिन महिलाओं तथा लड़कियों द्वारा सुहाग देने का प्रयोग किया जाता है। यह अभी 5 से 10 ग्राम सोने की बनी होती है कहीं कहीं से चांदी का भी बनाया जाता है।                बंदी( बांदी) यह पुराना जेवर है जो पाजेब की तरह चांदी से बना होता है। यह सड़क से 70 सेंटीमीटर लंबाई के रूप में पूरे माथे पर लगा होता है। अब यह अधिक प्रचलन में नहीं है। यह अब प्रचलन में नहीं है ,मुगलकालीन शैली के चित्रों में दिखाई देता है।

आभूषण- नाक के आभूषण

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                             नथ(नथूली) "नथ" उत्तराखंड में शुभ कार्यों में प्रयोग होने वाला आभूषण है। इसे वैवाहिक कार्यों में प्रयोग में लाया जाता है।इसे मुख्य रूप से विवाहित स्त्री पहनती हैं। यह समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कुमावत सा गढ़वाल दोनों ही क्षेत्रों में नथिया नथुली को सुहाग का प्रतीक माना जाता है इसकी बनावट मैदानी भागों की  होनथ में से भिन्न होता हैय।30 से 50 ग्राम भार की तथा 10 सेंटीमीटर अर्थ व्यास की गोलाकार छल्ले जैसे आकृति की होती है  ,नीचे वाले भाग में लाल हरे गुलाबी रंग के सितारे लगे होते हैं इसे एक जंजीर के द्वारा हुक लगा कर बालों से लटका कर नाक पर पहनना होता है जिससे कि इसका भार नाक पर कम महसूस होता है। टिहरी गढ़वाल की नथ अपनी विशिष्ट बनावट और भार के कारण बहुत प्रसिद्ध है कहीं कहीं इसे बेसर भी कहा जाता है। गढ़वाल में हल्दी हाथ मै  में अधिकांशतः पीले कपड़े पहने जाते हैं। यह परिवार की धन संपदा समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।                      बुलाक यहां पर्वतीय क्षेत्र का एक विशिष्ट आभूषण है। बुलाक 5 से 10 ग्राम तक सोने से बनाई जाती है ,इसका ऊपरी भाग उल्