उत्तराखंड में कानों के आभूषण
मुर्खली या मुर्खी या मुन्दड़ा
मुर्खली , अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोने या चांदी की 5 से 10 ग्राम भार तक की होती है। पहले यह बारह आना शुद्ध सोने की होती थी । इन्हें कानों के किनारे पहना जाता है । यह दिखने में बहुत ही सुंदर लगती हैं यह स्त्री के सौंदर्य को बढ़ा देते है।
बाली:- यह छोटे गिलास क्या करके सोने की बनाई जाती थी किन्तुब अब चांदी या पीतल की भी बनी हुई होती है। यह कान के निम्न भाग में क्षेत्र करके पहनी जाती है । फैशन के दौर में बाद अपने मूल स्वरूप से बहुत ही दूर हो गयी है।
कुंडल:- चांदी या सोने से बने हुए इस आभूषण पर बहुत ही आकर्षक ढंग से चित्रकारी की जाती है। इसमें उस पर फूल या मोर की आकृति बनी होती है।
कर्णफूल:- यह चांद के आकार का पूरे कान को ढकने वाला आभूषण है ।जो ऊपरकी और पतला और नीचे की तरफ चढ़ा बना हुआ होता है। यह पांच से 10 ग्राम तक के बनाए जाते हैं।
तुग्यल:- कुमाऊं क्षेत्र में प्रचलित कानों का यह आभूषण चपटी की पट्टी के आकार का होता है ।जो सोने या चांदी का बना होता है इसका हलवाई इलाज नगीने जुड़े होते हैं।
गोरख:- यह विशेष रूप से पुरुषों का गहना है। जिसे सोना या चांदी दोनों धातुओं से बनाया जा सकता है इस पर सुंदर झुमके लगे होते हैं। शादी विवाह के अवसर पर दूल्हे को दिया जाने वाले 10 ग्राम का बना होता है। किंतु आधुनिक समय में यह विलुप्त हो गया है।
कानों में झुमके ,झुपझुप्पी,जल- कंछव,उत्तरौले और मछली भी पहनी जाती हैं।
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